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आदमी का लक्ष्य


✍️डा.केवलकृष्ण पाठक

संयमित जीवन बिताना लक्ष्य है इंसान का

पर संयमहीन जीवन को बिताता आदमी

हो गया स्वाधीन है पर मानता पराधीन है

एसे वातावरण में खुश रहना चाहता आदमी

आज तो लगता है ऐसा आदमी निस्वार्थ है

धोखा दे के राज्य करना चाहता है आदमी

लगता जैसे आदमी हर हाल में रहता है खुश

पर विवश हो जिंदगी के दिन बिताता आदमी

ढेर सारी वस्तुएं हैं ऐश-ओ - इशरत के लिए

पैसा पानी की तरह ही है बहाता आदमी

झोंपड़ी में जाके देखा तो यही लगने लगा

भूख से पीड़ित हुआ रोता चिलाता आदमी।

 


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