✍️श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
माँ कल्याणी जगत की, माँ है पावन नाम।
माँ के जैसा शुभ नहीं, कोई और सुनाम।
माँ गंगा का शुभ्रतम, है पावनतम नीर।
माँ की महिमा जग विदित, माँ होती गम्भीर।
माँ पावनतम तीर्थ है, बसते देव अनेक।
माँ का दर्शन कीजिये, जागे बुद्धि विवेक।
माँ ममता का सिन्धु है, माँ है सदा महान।
सदा चाहती माँ यही, सुखी रहे सन्तान।
माँ काशी कैलाश है, सादर करूँ प्रणाम।
माँ के चरणों में सदा, होते चारों धाम ।
माँ स्तुति माँ प्रार्थना, सजदा और अजान।
रोजा की पाकीजगी, गीता और कुरान ।
*लहार,भिण्ड,म०प्र०
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