✍️अर्पणा दुबे
काश नारी पत्थर की होती
सुन्दर रहती हूं तो मेरा दोष
बदसूरत रहती हूं तो मेरा दोष
पढ़ाई करू तो मेरा दोष
न पढु तो मेरा दोष
पढ़ लिख कर कुछ बन जाऊँ तो मेरा दोष
कुछ न बनूँ तो मेरा दोष
घर के अन्दर रहूं तो मेरा दोष
घर के अन्दर न रहूं तो मेरा दोष
नारी चीख़ चीख़ कर पूछे ईश्वर से
तुने मुझें ये जीवन क्यू दिया
काश नारी को बना देता पत्थर का
डर लगता हैं इस दुनिया से
जब होता अत्याचार
तो लोग कहे नारी की गलती
बेटी रो-रो कर माँ से बोलें
मेरे वजह से सहना पड़ता हैं
इस दुनियां के ताने
कहां जाऊँ कहां छिपू
इन दरिन्दों से
यहीं मेरा दोष की मैं एक नारी हूं
मैं एक बेटी हूं
बस तू इतना प्रार्थना सुन ले ईश्वर
नारी को बना दे पत्थर का।।
*अनूपपुर मध्यप्रदेश
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