जीवन का आधार है प्रेम ।
हर दिल की दरकार है प्रेम ।
प्रेम बिना ये जग सूना,
रिश्तों का वस मर्म है प्रेम।
प्रेम तो एक अहसास है ।
शब्दों मे नही वयक्त है।
अपनत्व और जज्बात का,
वस कण,कण में ये व्याप्त है ।
इसका ना कोई रंग ना रूप है।
हर वंधन से ये मुक्त है।
प्रेम तो बस है एक अनभूती ,
संवेदना और विश्वास है ।
शबरी के झूठे बेरों में प्रेम।
मीरा के प्याले में प्रेम।
द्रौपदी का चीर बढाये,
भक्ति मे सराबोर है प्रेम।
सच्चा प्रेम जिसे हो जाये।
फिर कष्ट न उसके आडें आए ।
वेदना सहकर भी वह,
जीवन पर्यंत उसे निभाए।
*मेरठ(उत्तर प्रदेश)
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