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घर-घर दुःशासन खड़े



✍️डॉ. सत्यवान सौरभ

 


चीरहरण को देख कर,

दरबारी सब मौन !

प्रश्न करे अँधराज पर,

विदुर बने वो कौन !!

★★★


राम राज के नाम पर,

कैसे *हुए* सुधार !

घर-घर दुःशासन खड़े,

रावण है हर द्वार !!

★★★
कदम-कदम पर *हैं* खड़े,

*लपलप करे* सियार !

जाये तो जाये कहाँ,

हर बेटी लाचार !!

★★★

बची कहाँ है आजकल,

लाज-धर्म की डोर !

पल-पल लुटती बेटियां,

कैसा कलयुग घोर !!

★★★

वक्त बदलता दे रहा,

कैसे- कैसे घाव !

माली बाग़ उजाड़ते,

मांझी *खोये* नाव !!

★★★

घर-घर में रावण हुए,

चौराहे पर कंस !

बहू-बेटियां झेलती,

नित शैतानी दंश !!

★★★



वही खड़ी है द्रौपदी,

और बढ़ी है पीर !

दरबारी सब मूक है,

कौन बचाये चीर !!

★★★

छुपकर बैठे भेड़िये,

लगा रहे हैं दाँव !

बच पाए कैसे सखी,

अब भेड़ों का गाँव !!

★★★

 


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