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पता नहीं हम क्या लिखते हैं


   
✍️सतीश 'बब्बा'
पता नहीं हम क्या लिखते हैं,
लिखने लायक लिखते हैं,
या पढ़ने लायक लिखते हैं,
या बिकने लायक लिखते हैं!

पता नहीं हम क्या लिखते हैं,
दिन भर रामदेव लिखते हैं,
या सुशांत को लिखते हैं,
या फिर मन की बातें लिखते हैं!

पता नहीं हम क्या लिखते हैं,
अभिव्यक्ति के परिणाम से डरते हैं,
या कानूनी दाँव पेंच से डरते हैं,
या फिर पैसों के लिए लिखते हैं!

क्यों नहीं लिख पाते वह बातें,
हल चलाते हलवाहा किसानों की,
क्यों नहीं लिखते भूँख से तड़पते,
फटेहाल बात उस गरीब की !

पता नहीं हम क्या लिखते हैं,
कूड़े कचड़े में बिकते हैं,
लिखने लायक नहीं लिखते हैं,
पढ़ने लायक ही लिखते हैं!!

*कोबरा, जिला - चित्रकूट, उत्तर - प्रदेश


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