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मेरे घर का आईना



✍️रमाकान्त चौधरी

मुझे  देखकर  वो, हँसी  उड़ाता बहुत है।

मेरे घर का आईना,  चिढ़ाता बहुत है।

 

उसको पसंद  नहीं, चेहरे की झुर्रियां,  

अहसास  मुझको,  ये कराता बहुत है।

 

मेरी खामोशियाँ और बेबसी देखकर

वो  रोता  बहुत है,  रुलाता  बहुत  है।

 

हँसता है साथ मेरे, रोने पे रोता है  ,

अकेले में साथ ये निभाता बहुत है।

 

मुझसे  मेरा  हाल चाहता जानना है,

इसलिए मुझको वो सताता  बहुत है।

 


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