✍️आशु द्विवेदी
देखे थे जो सपने मैंने।
वो सपने चकनाचूर हुए।
आँखों में थे ख्वाब मेरे जो।
वो ख्वाब आँखों से दूर हुए।
क्या बताएँ हम किसी को।
कितने हम मजबूर हुए।
क्या करते किस ओर जाते।
मन में एक पहेली थी।
कहने को सब अपने थे।
पर ना समझे मेरे सपने थे।
किसको बताते हाल दिल का।
हम सब के बीच अकेले थे ।
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