Subscribe Us

मन में एक पहेली








✍️आशु द्विवेदी

देखे थे जो सपने मैंने।

वो सपने चकनाचूर हुए।

 

आँखों में थे ख्वाब मेरे जो।

वो ख्वाब आँखों से दूर हुए।

 

क्या बताएँ हम किसी को।

कितने हम मजबूर हुए।

 

क्या करते किस ओर जाते।

मन में एक पहेली थी।

 

कहने को सब अपने थे। 

पर ना समझे मेरे सपने थे।

 

किसको बताते हाल दिल का।

हम सब के बीच अकेले थे ।


अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.com


यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 




 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ