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कोरोना काल और शिक्षक 



✍️प्रीति शर्मा असीम

कोरोना काल में घर में बंद होकर।

सबको जिंदगी के अहम सबक याद आए ।।

 

कोरोना काल में घर में बंद होकर। 

सड़कों पर भटकते मजदूर ,

गरीब होने की सजा पा रहे थे।

 

जिंदगी के अच्छे दिन आएंगे।    

यह स्लोगन भी याद आ रहे थे।

 

कोरोना ने कर दिया..क्या हाल।

टीवी देख कर आंख में ,

कुछ के आंसू भी आ रहे थे।

 

विडंबना देखिए .....    

हालात और शिक्षण नीतियों के मारे ।

 

शिक्षक किस हाल में है ।

ना किसी को प्राइवेट ,

और ना सरकारी शिक्षक याद आ रहे थे ।

 

जो इस महामारी में,

समस्त विषमता से परे ।

 

दुनिया को कोरोना क्या शिक्षा दे रहा है ।

इस बात से अनभिज्ञ ,

ऑनलाइन पाठ पुस्तकों के चित्र घूमा रहे थे ।

 

बस ऑनलाइन सिस्टम की, 

कठपुतलियां बन के,

 बच्चों को नोट- पाठ्यक्रम पहुंचा रहे थे।

 

 जिंदगी की सच्चाई से ना खुद शिक्षित हुए।

 ना इसका मूल्य समझा पा रहे थे।

 कोरोना जिंदगी को,

 जिस हाशिए पर खड़ा कर गया ।

 कहीं  वेतन कट ना जाए।

 

शिक्षक पाठ्यक्रम, 

पेपर ऑनलाइन का राग गा  रहे थे।

 

 जिंदगी के असल सच से कितना परे थे।

 हमारे शिक्षक स्थल आज घर में बंद होकर भी,

 कुदरत का पाठ ना पढ़ पा रहे थे।

 न समझा पा रहे थे।

 

नालागढ, हिमाचल प्रदेश

 


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