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हिन्दी माँ-अंग्रेजी आंटी



✍️रमाकान्त चौधरी


हमारा अपना भारत देश जिसे हम विश्वगुरू बनाने का सपना  देख रहे हैं किन्तु हम अपनी ही भाषा हिन्दी को अपने ही देश में वह सम्मान नही दिला पा रहे हैं। जिसकी वह सच्चे माइने में हकदार है। जबकि भारतीय संविधान में इसे राजभाषा का दर्जा पहले से प्राप्त है। अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर हम भारतीय लोग सदियों से हिन्दी बोलते चले आ रहे हैं फिर अन्य तमाम देशों की तरह हमारे देश की अपनी भाषा को हम सम्मान क्यों नही दे पाए?  शायद इसकी महत्वपूर्ण बजह ये रही कि जब हमारे देश में अंग्रेजों का शासन हुआ तो उन्होंने हमारे दिलों दिमाग में अपना शासन ही नही अपनी भाषा भी ठूँस-ठूँस कर भर दी और धीरे-धीरे हम उस भाषा से प्यार करने लगे क्योंकि हमारे लिए वह नई भाषा थी जिसे बोलने का शौक और आनन्द था। जिसका परिणाम ये हुआ कि स्वाधीनता के बाद भी हम उससे मोह नही छोड़ पाये हालांकि अंग्रेजी हमारी जरूरत है किन्तु हम उसके गुलाम हो गए और इसे अपने मान सम्मान में शामिल कर लिया। और अपनी मातृ भाषा से अधिक सम्मान देने लगे। यह बिल्कुल ठीक वैसा ही हुआ जैसे कोई बच्चा अपनी माँ से ज्यादा पड़ोस वाली आंटी को प्यार करने लगे। कहने का तात्पर्य यह है कि आंटी को सम्मान देना अच्छी बात है किन्तु आंटी के चक्कर में माँ को उसके हक का सम्मान न देना अन्याय है। इसलिये हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि हिन्दी भाषा को वो सम्मान मिलना चाहिए जिसकी ये हकदार है।


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