✍️पं.दिनेश तिवारी
बढती गई फेहरिस्त
दौलत वालों की।
दिल वालों ने भी
जमकर नाम कमाया।
चलती रही थी खींच तांन
बराबर से ।
कभी दौलत को दिल
पसंद आया।
कभी दोलत को दिल,
कभी दौलत।
अंत मे फेसला हुवा
दिल के लिए।
जहाँ दिल है वही दौलत
होगी।
बिना दिल के दौलत का होना
बेकार ।
फिर निर्णय
हुवा दौलत उतनी आवश्यक नही है।
जितना दिल बिना दिल।
के दौलत कुछ नही कर सकती।
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