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दादाजी जैसा प्यारा वह बूढ़ा पीपल



✍️रविकान्त सनाढ्य

 

मेरे गाँव में एक 

पुरानी बावड़ी के निकट 

खड़ा हुआ है 

लंबा- ऊँचा-सा 

एक  बूढ़ा  पीपल ! 

 

लोगों से सुनते आए हैं 

भूत रहता है 

पीपल के पेड़ में ! 

  

जाता नहीं 

रात में अकेले 

उसके नीचे 

एक भी जन ! 

जबकि सही यह है कि 

वह देता है हमें 

भरपूर आक्सीजन !

 

हमारी सं स्कृति में 

बहुत मान्यता है 

अश्वत्थ की  ! 

पुण्य-वृक्ष मानकर 

होता है इसका पूजन ! 

 

पीपल के पत्ते 

रात के सन्नाटे में 

हिलते हैं ।

खड़-खड़ करते हुए 

उछलते हैं ।

 

करते हैं उल्लास और 

उमंग की अभिव्यक्ति !

 

सूखते  जाते हैं यह बताने को , 

कर रहे हैं हम पुराने पत्ते 

नये पत्तों का स्वागत ! 

 

बूढ़े दादा का 

दुलार है यह 

जोर-शोर से ! 

 

जैसे अभयदान 

देता हुआ 

कह रहा हो पीपल, 

में हूँ ना संरक्षक 

तुम्हारा ! 

 

नवल -परंपराओं का 

आगाज़ करनेवाला, 

हमें दुलराने वाला  

सांस्कृतिक वृक्ष है 

पीपल !

 

सचमुच बहुत प्यारा 

लगता है मुझे बहुत प्यारा 

दादा जी जैसा 

वह बूढ़ा पीपल ! 

 

आओ, हम अंधविश्वास 

और भ्रांतियों को तिलांजलि दें 

हाथ में ले , छोड़कर जल !!

 

*भीलवाड़ा(राजस्थान ) 

 


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