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उलझनों के झूले



✍️प्रीति शर्मा असीम

उलझनों के बीच भी मुस्कुराती हैं। 

अपने दर्द को दो घड़ी भूल जाती है।

जिंदगी  हर त्यौहार को ,

हर हाल में उदास होकर भी, 

खुशियों के झूले पर झूल जाती है।

उलझनों के बीच भी मुस्कुराती हैं।

अपने दर्द को दो घड़ी भूल जाती है ।

जिंदगी हर दिन ,

नयी लड़ाई के लिए तैयार हो जाती है ।

रोते हुए भी मुस्कुरा कर,

सब ठीक है.......!!!!

यह बात कह जाती है ।

उलझनों के बीच भी मुस्कुराती हैं। 

अपने दर्द को दो घड़ी भूल जाती है ।

जिंदगी में झूले ही ,

नहीं मिलते हर पल ।

रस्सियों पर झूलती ।

जिंदगी भी ,

अपनी बात कह जाती है।

खुशियां कीमतों से ही नहीं खरीदी जाती ।

मुस्कुराने के लिए हर दर्द से उभरकर ,

जिंदगी हर बात कर जाती है।

 

*नालागढ़ हिमाचल प्रदेश

 


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