✍️सरिता सुराणा
6अगस्त हिरोशिमा दिवस और 9अगस्त को नागासाकी दिवस पर एक कविता-
समय की रेत पर
आज ही के दिन
कुछ साम्राज्यवादी ताकतों की
असीमित, अदम्य दम्भी लिप्सा का
फल भोगना पड़ा था
लाखों मासूम लोगों को
जिनका दोष सिर्फ इतना था कि
वे उस राष्ट्र के वासी थे
जिसके तानाशाही शासक ने
अपने अहं के तुष्टिकरण की खातिर
झोंक दिया था
अपने ही मुल्क को
विश्वयुद्ध की आग में
ज़िन्दा ज़लने के लिए और
सदियों-सदियों तक
उस अभिशप्त वातावरण को
भोगने के लिए
जहां इंसान तो क्या
कोई भी अन्य प्राणी
जीवित नहीं रह सकता
जहां की राख आज भी उगलती है
ज़हरीले विकिरणों वाली दूषित हवा
आज भी पैदा होते हैं वहां
अर्द्ध विक्षिप्त, विकलांग और
अष्टावक्री बच्चे
जो कोसते हैं अपने आपको और
समूची मानव जाति को
आज उसकी 73 वीं वर्षगांठ पर
आओ एक संकल्प करें
न आने देंगे विश्व इतिहास में वापस
कोई ऐसा काला,
घिनौना-जघन्य दिवस!
जब फिर कोई अमेरिका फेंके
'लिटिल बाॅय' और
'फैट मैन' जैसे परमाणु बम
ना ही कोई दूसरा
हिरोशिमा और नागासाकी बने
ना लिखनी पड़े किसी को ऐसी इबारत
समय की रेत पर
जिसकी छाप मिटाए न मिटे और
कालिख छुड़ाए न छूटे।
*हैदराबाद
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