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सबके दिन फिरते हैं








✍️मीरा सिंह 'मीरा'
कुदरत एक स्थान पर किसी को कभी टिकने नहीं देती है।कुदरत हर पल हर क्षण गतिशील रहती है। अपनी रचनाओं को निहारती रहती है। कुछ नया बनाती है, कुछ पुराना मिटाती रहती है। करे भी क्या? कैनवस भी तो सीमित ही है ना। मुझ जैसा नाचीज अल्प ज्ञानी जब बात बात पर कलम घिसने के लिए उतावला हो जाता है, तो उस सृजनहार की मनोदशा का क्या वर्णन करना जो सर्वश्रेष्ठ है। अनवरत जीवंत शाहकार बनाने में रत रहा है। अपने ख्यालों को मूर्त रूप देने के लिए कुछ चीजों का स्थान हमेशा बदलते रहता है।
      हम लोग भी तो परिवर्तन के अभ्यस्त हैं। एक जैसा कपड़ा, खाना या मौसम कभी पसंद नहीं करते हैं। हमारे पतिदेव का ही लीजिए। छुट्टी के दिन एक मिनट भी न खुद चैन से रहते हैं न किसी और को चैन से रहने देते हैं। हमेशा घर के सामानों को इधर से उधर करते रहते हैं।ठीक वैसै ही जैसे गांव में मेरी दादी एक कोठिला का सामान दूसरे कोठिला में डालवाती थी।कभी-कभी मैं खींझ कर पूछ बैठती हूं"यह क्या कर रहे हैं ? बेवजह इधर का सामान उधर क्यों कर रहे हैं? इस पर वे हंस कर कहते हैं "तुम नहीं समझोगी- -यह देखो ,अब कितना अच्छा लग रहा है ।सामानों का जगह हमेशा बदलते रहना चाहिए ।इससे घर को नया लुक मिलता है। देखने में भी कुछ नया और सुंदर लगता है। है कि नहीं"? बात में दम था। मुझे भी हामी भरनी पड़ी ।सही बात है एक जगह रहते- रहते हर कोई  बोर हो जाता है ।रोज एक जैसा खाना कौन पसंद करता है? परिवर्तन सृष्टि का नियम है।प्रकृति भी हमेशा सबको इधर से उधर करते रहती है। इन दिनों उसकी कोशिश हासिए में पड़े शाहकारों को मुखपृष्ठ पर लाने की है। गुमनामी के अंधेरे में जी रहा मास्क दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कोरोना योद्धा का खिताब जीत चुका है ।अब गिलोय को ही लीजिए- - इस साल के पहले उसकी गुणवत्ता को कौन जानता था? आज घर-घर का पाहुन बना हुआ है।पहले भी तो सर्वत्र ही उपलब्ध था पर किसी को फूटी आंख भी नहीं सुहाता था। आज सब का दुलारा बने हुआ है। लोग उसके गुणों की बखान करते नहीं थकते।यही नहीं पहले की तरह नाक भौ सिकोड़ने के बजाए उसे अपने प्रिय पेय का गौरव प्रदान कर चुके हैं।कुछ लोग तो उसे आदर के साथ अपने घर में बसाने का मूड बना चुके हैं। यही हाल कई अनाम जड़ी बूटियों और मसालों का है। उनका उपयोग तो हम वर्षों से करते आ रहे हैं,पर उनके गुणों से सर्वथा अनभिज्ञ ही थे।कल तक उनके महत्व की बखान कोई नहीं करता था। तुलसी माई भी नए कलेवर में नजर आ रही हैं। सुबह शाम लोग उनका अमृत पान का आनंद ले रहे हैं ।बरसाती नदियों के दिन भी फिरे हैं।अपने रौद्र रूप के कारण वे भी सुर्खियों में हैं।लोग सच ही कहते हैं कि एकदिन सबके दिन फिरते हैं।जरा हरी सब्जियों के भाव देखिए ---आसमान छू रहा है। छुए भी क्यों नहीं? नीचे रहने वाले को तो कोई पूछता ही नहीं है। जो चीज आसानी से उपलब्ध हो उसकी कोई कद्र नहीं करता।ऑक्सीजन सिलेंडर में समाकर कितना इतरा रहा है।जबकि वायुमंडल में उपलब्ध ऑक्सीजन को कौन पूछ रहा है?उसकी शुद्धता के बारे में कौन सोचता है, जबकि सिलेंडर वाले ऑक्सीजन के लिए आए दिन हंगामा हो रहा है।हैंड वाॅश और सैनिटाइजर भी अस्पतालों की कैद से मुक्त होकर हमारे घरों में आ बैठे ।यहीं नहीं, कल तक जो लोग मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को पानी पीकर कोस रहे थे, आज स्वेच्छा से अपने बच्चों के लिए नया मोबाइल खरीद रहे हैं । बच्चों का आनलाइन क्लास भी तो इलेक्ट्रॉनिक मिडिया के कंधों पर है।भगवान जी का दरबार भी आनलाइन सज रहा है।इसके साथ भगवान अपने भक्तो को आनलाइन दर्शन भी दे रहे हैं?मुझे तो यही महसूस हो रहा है कि अब तक जो अंधेरे में रहा,उसे अब रोशनी में लाकर कुदरत प्रकाशित करने का बीड़ा कुदरत उठा चुकी है।सबके दिन फिरकर ही रहेंगे।

*डुमरांव , जिला-बक्सर , बिहार











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