✍️रविकान्त सनाढ्य
लालिमा के सागर हो, रूप- गुन- आगर हो,
और नटनागर हो, प्रभु मेरे रसिया ।
कृपा की जो कोर किसी दुखिया पै होइ जाए,
रोग- शोक मानिये कि तुरत ही नसिया।
उड़त गुलाल लाल, ऐसे हैं कृपाल ग्वाल,
काटि कै विपद् जाल हिय में ही बसिया।
छाइग्यो अनंद, तेरो बड़ो एहसानमंद,
वारी जाए रविकंत प्रेम ही विलसिया।।
रूप है अनूप मेरे श्री जी को सिंगार देखो,
मुकुट पै मणियाँ, सुभग छवि प्यारी है l
आभरण भारी- भारी, पुष्पमाल न्यारी- न्यारी,
चितवन स्याम की परम सुखकारी है l
वसन प्रभावकारी,स्मित मंद मुग्धकारी,
नील घनस्याम मेरो रसिक बिहारी है l
कहै रविकंत घने अनंद के कंद तो पै,
होऊँ मैं निसार तेरी खूब बलिहारी है ।।
मोगरे कीकलियों का सुभग सिंगार बना,
सेहरे की लड़ियाँ औ हार भी सुहावै हैं ।
मेरे प्रिय बाकड़ैबिहारीलाल जँच रहै ,
आपको यो रूप मोहि अति दाय आवै है ।
अनियारे नैन भी तो कलिन की समता में ,
स्रवनन स्पर्श करिबै को अकुलावैं हैं ।
साँवरै की रूपमाधुरी है अति अन्यतम ,
उमगै है अनुराग चेटक चलावै है।।
*भीलवाड़ा (राज.)
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