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रिश्ते



✍️आशीष दशोत्तर

तबादला हुआ तो वे बड़े खुश है कि अपनों  के क़रीब जा रहे हैं। उनका उनकी नौकरी शुरू से निजी क्षेत्र में ही रही। वे कई स्थान पर घूमते रहे। यह पहला अवसर था कि जिस कंपनी विवेकमें वे इस वक़्त काम कर रहे थे उस कंपनी ने अपनी एक नई यूनिट इस क्षेत्र में प्रारंभ करने की प्रक्रिया शुरू की थी। नई यूनिट में तबादले के लिए वहां कार्यरत कर्मचारियों से उनकी इच्छा पूछी तो उन्होंने सहर्ष अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। आखिर बरसों बाद अपने भाई के क़रीब जाने का मौका जो मिल रहा था।

जहां नई यूनिट स्थापित होना थी वह भाई के शहर से क़रीब ही थी यानी उसी जिले में । उनकी स्वीकृति के आधार पर कंपनी ने उन्हें नए स्थान के लिए कार्यमुक्त कर दिया । वे अपना पूरा सामान पैक कर पत्नी और दो बच्चों के साथ अपने नए कार्य क्षेत्र के लिए रवाना हो गए। बारह घंटे से अधिक का सफर तय कर वे उस जिले के क़रीब पहुंच गए जहां उन्हें जाना था। जिले की सीमा पर पहुंचते ही चेक पोस्ट पर उन्हें रोका गया। वहां मौजूद दल ने पूछताछ की क्योंकि वे अन्य राज्य से होते हुए आ रहे थे। उन्हें यही रहना था इसलिए उस दौरान निर्धारित नियमों के मुताबिक उन्हें शहर में प्रवेश देना संभव नहीं था।  इसलिए वहाँ मौजूद अधिकारी ने उनसे कहा गया कि वे पहले क्वॉरेंटाइन सेंटर में रहें, उसके बाद उन्हें उनके कार्य क्षेत्र के लिए जाने दिया जाएगा। वे बहुत पशोपेश में पड़ गए। परिवार के साथ वहां कैसे रहेंगे। 

उन्होंने मौजूद अधिकारी से निवेदन किया कि क्वारंटाइन ही रहना है तो मुझे अपने भाई के यहां रहने दिया जाए। उनके भाई का घर शहर के बाहरी इलाके में स्थित था। उन्होंने भाई के घर की लोकेशन दल को बताई । दल ने संतुष्ट होते हुए उन्हें होम क्वारंटाइन रहने की हिदायत देते हुए भाई के घर जाने की इजाज़त दे दी। राहत महसूस करते हुए सपरिवार वे वहां से चले गए।

करीब तीन घंटे बाद उनका उसी अधिकारी के पास फोन आया कि आप आपके द्वारा स्थापित क्वॉरेंटाइन सेंटर कहां हैं? आप वहां का पता दे दें हम वहीं पर क्वारंटाइन रहेंगे। अधिकारी को उनकी बात पर आश्चर्य हुआ। अधिकारी पहले तो समझे कि वे झूठ बोल रहे थे कि उनके भाई के यहां जा रहे हैं । अब उन्हें कहीं क्वारंटाइन रहना ही है, इसलिए उनसे स्थान का पता पूछ रहे हैं।

अधिकारी ने उनसे पूछा, आप तो अपने भाई के यहां जाने का कह रहे थे फिर क्वॉरेंटाइन सेंटर क्यों जा रहे हैं? वे कहने लगे मैं वहीं आकर बताऊंगा। यह फोन पर बताने वाली बात नहीं है। अधिकारी ने उन्हें पुनः उसी चेकिंग पॉइंट पर बुलवाया। चेकिंग पॉइंट के करीब ही एक क्वारंटाइन सेंटर था। जहां पर उन्हें क्वारंटाइन किया गया।

अपने परिवार सहित वे सेंटर में पहुंच गए। परिवार को वहीं छोड़ , पुनः अधिकारी के पास लौटे और कहने लगे, आप मुझसे पूछ रहे थे कि अपने भाई के यहां जा कर फिर सेंटर वापस क्यों लट रहे हैं । हो सकता है आपको मेरी बात में झूठ भी लगा हो। आपने समझा हो कि मेरा कोई भाई है ही नहीं और मैं आपको व्यर्थ ही बहाने बना रहा था, लेकिन हक़ीक़त इतनी दुखद है जिससे मैं बताते हुए भी पीड़ित हूं। वे कहने लगे,  जब मैं अपने परिवार के साथ अपने भाई के घर पहुंचा तो मुझे उम्मीद थी कि भाई और उसके परिवार वाले प्रसन्न होंगे और हमें पाकर आनंद की अनुभूति करेंगे। लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे। जब हम वहां पहुंचे तो भाई तो घर पर थे नहीं, भाभी ने हमें घर में घुसने ही नहीं दिया । अंदर से ही भी बोलती रहीं कि आप इतनी दूर से आ रहे हैं पता नहीं आपके साथ कौन से वायरस आए हों इसलिए हम आपको घर में नहीं आने देंगे। भाभी का यह व्यवहार देख हम चकित रह गए  उन्होंने अपने भाई को फोन लगाया और सारी बात बताई  । भाई ने भी वही कहा कि तुम्हारी भाभी जैसा कह रही है ठीक ही है। ऐसे समय में हम अपने बच्चों के लिए ख़तरा क्यों मोल लें। फिर आज पड़ोसियों को भी जब यह बात पता चलेगी कि तुम इतनी दूर से आकर यहां रह रहे हो तो हमारा रहना भी मुश्किल हो जाएगा।  इसलिए तुम क्वारंटाइन सेंटर ही ठहर जाओ। वहाँ मैं दो घंटे तक रहा मगर भाभी का दिल नहीं पसीजा। भाई की बात सुन मेरे तो पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई।  जिन अपनों की खातिर मैं बरसों बाद लौट कर इतने क़रीब आया था वे अपने ही मुझे पराये से लग रहे थे । एक वायरस ने हमारे रिश्ते तार-तार कर दिए और हम कुछ नहीं कर पाए। यह कहते हुए क्वारंटाइन सेंटर लौट रहे थे। चेकिंग पॉइंट पर खड़े अधिकारी उनके पास मौजूद ऐसे कई दुखदायी प्रसंगों  में इसे भी शामिल कर रहे थे।

*रतलाम

 


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