✍️स्वाति सोनी 'मानसी'
मुहब्बत जरा सी, शराफत जरा सी,
नहीं आज़माई अदावत जरा सी ।
मुनासिब न गर रिश्ते निभाना,
रहे दोस्ती की रवायत जरा सी ।
मेरी जिंदगी की यही है कहानी,
किसी के लिए हो चाहत जरा सी ।
वही बदगुमानी, वही बेवफाई,
बदलती कहाँ है ये आदत जरा सी ।
मिली इश्क में जब यूँ नाकामियाँ तो,
वफाओं ने करली नदामत जरा सी ।
मिटा दो मुझे गर यही चाहते हो,
बची ही नही मुझमें ताकत जरा सी।
गमों से भरा है मेरा चाक दामन,
मुझे काश मिल जाती राहत जरा सी ।
अकेली नहीं हूँ मुझे भी है हासिल,
सफर में खुदा की इनायत जरा सी ।
मेरा है मुकद्दर, मुझे जो है हासिल,
नहीं है किसी से शिकायत जरा सी ।
जमाना भी शायद यही चाहता है,
करे 'मानसी' भी बगावत जरा सी ।
मुलताई (म.प्र.)
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