✍️डॉ.अहिल्या तिवारी
मेरे विचारों को जो करता है जीवंत
मेरे हाथों की लकीरों को उकेरता पन्नों पर
परिचय देता दुनिया को मेरे वजूद का
मेरे जीवन में भरता है जो नवरंग
मेरी अभिलाषाओं को जो देता है रूप
मैंने बांधी है राखी उस लेखनी को।
उसकी छाया में बैठ लिखी कुछ पंक्तियाँ
उसके नि:स्वार्थ फलों ने दिए विचार
उसके फूलों की खुशबू से महका है मन
उसके झुमते पत्तों ने सुनाए हैं गान
मेरे जीवन को सुरक्षित किया है जिसने
मैंने बांधी है राखी उस वृक्ष को।
बंधनों में स्नेह के बांध कर रखा
रिश्तों को जिसने सिखाया निभाना
अहसास कराता हर पल दायित्वों का
मेरे अनुभवों का जो है साक्षीदार
बांट लेता है दर्द मेरे जीवन के
मैंने बांधी है राखी उस चौखट को।
बदल दिए हैं मैंने राखी के मायने
आज बदले हैं कुछ रिश्तों के रूप
बनाया है कुछ नए रिश्तों का जाल
सदियों पुरानी परंपराओं से छीने हैं
अपनी सुरक्षा के अधिकार और ढोंग
मैंने बांधी है राखी उन नवविचारों को।
*रायपुर, छत्तीसगढ़
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