✍️डॉ.आनिल शर्मा 'अनिल'
जय गोविंद गोपाल कन्हैया।
मन को भाते बाल कन्हैया।।
मात यशोदा का है प्यारा,
कहते सब नंदलाल कन्हैया।
मोर मुकुट मुखड़े की शोभा,
लट घुंघराले बाल कन्हैया।
रोज नई लीलाएं रचते,
करते खूब कमाल कन्हैया।
नजर लगे न कहीं किसी की
दिए दिठौना,भाव कन्हैया।
रुप बदल जो राक्षस आते,
बन गये उनका काल कन्हैया।
मां चंदा की छवि दिखाती,
देखें पानी थाल कन्हैया।
काली कंबली भाती इनको
भाये न रेशम शाल कन्हैया।
छिपकर सबको खूब छकाते
बैठ कदंब की डाल कन्हैया।
माखन मिश्री भाती इनको
चखें न रोटी दाल कन्हैया।
मां ने थोड़ी डांट लगाई,
लगे बुलाने गाल कन्हैया।
बंसी मधुर बजाते चलते
मस्तानी सी चाल कन्हैया।
संग गोपिकाओं के मिलकर
नाचें दे दे ताल कन्हैया।
राधा गोरी, मैं क्यों काला,
पूछें रोज सवाल कन्हैया।
होली में राधा संग मिलकर
करते खूब धमाल कन्हैया।
भक्तों पर जब संकट आता,
बन जाते हैं ढाल कन्हैया।
गोवर्धन पर्वत को उठाकर,
संकट देते टाल कन्हैया।
मित्र सुदामा जैसा सबको,
करते मालामाल कन्हैया।
सब पर कृपा बनाए रखते,
रहे जगत को पाल कन्हैया।
ब्रज रज की महिमा अति न्यारी,
जिसमें खेलें लाल कन्हैया।
'अनिल' सभी के मन को भाते,
करते सदा निहाल कन्हैया।
*धामपुर, उत्तर प्रदेश
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