✍️राजीव डोगरा 'विमल'
मैं पत्थर सा हुआ
उनकी याद में,
वो तोड़ते रहे मुझे
अपने इंतकाम में,
सोचा न उन्होंने कभी
कि बीते हुए वक्त में
मैं कितना तड़पा हूँ
उनकी याद में,
बस वो जख्म देते रहे मुझे
हँसते हुए अपने इंतकाम।
मैं लेकर मिट्टी का तन
उड़ता रहा उनकी याद में
और वो बनकर बवंडर
खिलवाड़ करते रहे मुझसे
अपने ही इंतकाम में।
*कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
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