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धरती से गुम एक सितारा



✍️अर्चना त्यागी

 

जीते जी वो सितारा था,

मौत के बाद ध्रुव तारा बन गया।

चहेता था सबका,

देखो वो गुलशन नज़ारा बन गया।


सुशांत एक संकल्प है। सुशांत एक मुहिम है। सुशांत एक आंदोलन है। सुशांत एक इंसान था जो इंसानों पर भरोसा करता था। सुशांत एक शिवभक्त था जो कम उम्र में ही अध्यात्म को अपना चुका था। सुशांत की हत्या हुई या उसने आत्महत्या की ? यह सच अभी सामने आना बाकी है। मौत के बाद सुशांत की लोकप्रियता और भी बढ़ रही है। उसके जीवन के पन्ने एक एक करके खुल रहे हैं। बहुत सी बातें सबके सामने आ रही हैं। ऐसी एक भी आंख नहीं जो उसके लिए नम नहीं है। कोई मस्तिष्क नहीं जिसे उसकी मौत के रहस्य ने झकझोर न दिया हो। एक स्वतः संचालित, परिश्रमी व्यक्तित्व जो अपने काम से जीवन के जितना ही प्यार करता था। कुछ लोगों ने अपनी स्वार्थसिद्धि की बलि चढ़ा दिया। उसके साथ विश्वाघात किया। उसका धन ठग लिया। और संसार से असमय विदा कर दिया। खूबसूरत चेहरों के पीछे छुपी काली सूरत। अपनों का नकाब  ओढ़े हुए कातिल। शर्मसार होते हुए रिश्ते। अनगिनत प्रश्न किन्तु कोई उत्तर नहीं। 

दुखद स्थिति अत्यंत दुखद पहलू

जिस तंत्र का ढांचा नागरिकों की सुरक्षा करने के लिए बुना गया हो, उसका यह कौन सा रूप है ? क्या यही दायित्व है ? जिसके साथ ग़लत हुआ या सही शब्दों में जुर्म हुआ, उसके प्रति कोई संवेदना नहीं। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा। उसके कातिलों को बचाने के लिए एक वर्ग विशेष की लगातार कोशिश। हर संभव कोशिश। सभी दांव पेंच लगाए जा रहे हैं। क्रूरता की पराकाष्ठा।

अत्यंत निंदनीय कृत्य

एक साल से भी अधिक समय तक योजना चलती है। अलग अलग बहानों से पैसा ठगा जाता है।प्रेत आत्माओं का अस्तित्व बताकर एक निश्चल मन को डराया जाता है। अवसाद के सिद्धांत को जबरदस्ती आरोपित किया जाता है। जीते जी परिवार, समाज और दुनिया से संपर्क ख़त्म कर दिया जाता है। अपने मतलब के लोगों से घेर दिया जाता है। पारिवारिक व्यक्ति होते हुए भी बिल्कुल अकेला रहने को मजबूर कर दिया जाता है। महीनों तक मानसिक रोगी बने रहने का अभ्यास करवाया जाता  है। उसे विश्वास दिलाया जाता है कि कोई भी उससे मिलना नहीं चाहता। कोई भी उससे बात नहीं करना चाहता। इस तरह बंधक बनाया जाता है कि वी अपना दुःख किसी के साथ बांट नहीं सके। 

उस पिता की स्थिती बताने के लिए शब्द कम पड़ जाएंगे जिसके इकलौते पुत्र को बिना किसी गुनाह के हमेशा के लिए उनसे छीन लिया जाता है। जिस उम्र में उन्हें पुत्र के सहारे की सबसे ज्यादा आवश्यकता थी, उस उम्र में वो उसके साथ हुए अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रहे हैं। अपराधियों को पकड़ने की गुहार लगा रहे हैं। और अपराधियों का सुरक्षा कवच मजबूत होता जा रहा है। भगवान इस परिस्थिति से उबरने में उनकी सहायता करे। उन्हें सहयोग मिले जो जीते जी सुशांत को नहीं मिल पाया। छल कपट के उस आवरण को हटाने में सफल हो पाएं। ताकि कुछ  ज़िंदगियां बचाई जा सकें।

सुशांत एक ऐसा शब्द बन चुका है जिसे सुनते ही भावनाओं का प्रवाह रोके नहीं रुकता है। कितने काश आकर सामने खड़े हो जाते हैं। काश वो समय रहते अपने कातिलों की चाल समझ पाता। काश उस समय उसके पिता उसके साथ होते। काश वो उस जाल से बाहर निकल पाता जो उसे मारने के लिए बिछाया गया था। काश वो लोगों के तिलिस्म को समझ पाता। काश वो अपनी रक्षा कर पाता।

कलम रुकना नहीं चाहती परन्तु मस्तिष्क को आभास है कि अब रहस्य से पर्दा उठ भी जाए तो एक सच तो नहीं बदला जा सकता है। वो सच यही है कि सुशांत जिस लोक में जा चुका है वहां से कभी लौटकर नहीं आएगा। देख ही नहीं पाएगा उस आंदोलन को जो उसके चाहने वालों ने चलाया है। उन आंखों को भी नहीं देख पाएगा जिनमें नमी थम गई है, उसके चले जाने से। 

जीवित रहते हुए अपने जीवंत अभिनय से उसने बहुत सी भूमिकाओं में जान डाली। अभिनय जगत में काफी कम समय में एक अमिट पहचान बनाई। अब अपने जीवन की कहानी से सबको चौंका रहा है। रूला रहा है। जीवंत वास्तविकता। एक संघर्षपूर्ण, संक्षिप्त जीवन। जीवित रहते हुए जो काम अधूरा रहा, मरने के बाद कर रहा है। चकाचौंध भरी फिल्मी दुनिया का अंधकार दिखाकर। रिश्तों में लिपटे धोखे को दिखाकर। उम्मीद है सुशांत की मौत की गुत्थी जल्द ही सुलझेगी और मरने के बाद ही सही उसकी आत्मा को सुकून मिलेगा। मानवता का दीपक जलता रहेगा। वो सितारा जिसकी चमक धरती पर बर्दाश्त नहीं हुई, आकाश में प्रकाशमान रहेगा।  "उम्दा कलाकार है, कोई श्रेष्ठ भूमिका होगी तभी ऊपर वाले ने बुलाया होगा।"

*जोधपुर

 


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