✍️प्रशान्त शर्मा
देखो ये मौसम कैसे बदल रहा है
अंगुली थामे परवरदिगार चल रहा है
अरसों बाद फिर से लौटा है फागुन
कौन है जो चेहरों पर लहू मल रहा है
जाओ चरागों को जगा दो कोई
अंधेरों का राज चल रहा है
आग से आग बुझा रहे थे वो
देखो आज चमन जल रहा है
क्या कभी ऐसा हुआ था यहां
जो ये सब आज चल रहा है
बड़ी शान से निकला था जो सूरज
देखो भरी दोपहर में ढल रहा है
गुमां था की मसीहा है हमसफ़र मेरा
क्या खबर की साथ वेवफा चल रहा है
*चौरई , छिंदवाड़ा ,(म प्र)
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