✍️ रश्मि वत्स
चेहरा देख दर्पण में ,
खुद पर यूं इतराता क्यूँ ।
सूरत दिखे दर्पण में ,
सीरत का अंदाजा नही ।
दर्पण की अदाकारी इतनी सी ,
ये दिल का राज़ छुपाता नही ।
बयां कर देता हकीकत सारी,
जो दुनिया को पता ही नहीं ।
झूठ-सच को ये निभाता नही ,
जो है सामने ,बस वही दिखता है ।
संवार देता है तस्वीर तुम्हारी ,
पर तकदीर नही बनाता है ।
दर्पण से नाज़ुक दिल के रिश्ते,
ज़रा चोट लगे टूट जाते हैं ।
संभाल कर रखा करो इन्हें ,
बिखरे टुकड़े कहाँ फिर जुड़ पाते हैं ।
*मेरठ (उत्तर प्रदेश)
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