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बबुआन मुहल्ला  



✍️मीरा सिंह 'मीरा'
बबुआन मुहल्ले की गली पक्की बनेगी; अखबार में प्रकाशित टेंडर देख बबुआन वासियों के मन में खुशी हिलोरें लेने लगी। लोग एक दूसरे को रोककर पूछने लगे "तो भैया --- आखिरकार अब अपनी गली भी पक्की हो जाएगी। है ना?"
 " हां भाई। बहुत अच्छी खबर है ।बरसात के दिनों में तो यह हमेशा बजबजाता रहता था।बहुत दिक्कत होती थी।गली पक्की हो जाएगी तो सबके लिए अच्छा हो जाएगा।
 " आपको याद है भैया, पिछले साल मिश्रा जी कैसे फिसले थे? बेचारे आजतक ठीक से चल नहीं पाते हैं।"शर्मा जी बोल पड़े ।
 " अरे हां भैया। इतना फिसलबे करता है। का कहिएगा? थोड़ा सा पानी पड़ा नहीं कि सब तरफ पानी पानी हो जाता है।अभी देखिए न- --लग रहा है गली में नाव चलाना पड़ेगा।पिछला साल हमार छोटका भी तो गिर कर पैर तोड़वा लिया था।आप लोग भूल गए क्या?" इस वार्तालाप के बीच मोहल्ले के कुछ और पुरुष वहां आ गए।सबके चेहरे पर खुशी चमक रही थी। एक नेता टाइप के सज्जन कहने लगे "आप लोगों को पता है---? इसे बनवाने के लिए मुझे कितना पापड़ बेलना पड़ा है?"  सब लोग उनका मुँह ताकने लगे। वो जोश से भर गए। जोशीले अंदाज में मूंछों पर ताव देते हुए कहने लगे " नगर अध्यक्ष को साफ-साफ कह दिया था कि अगर अबकी बार भी हमारी गली पक्की नहीं करवाए तो समझ लीजिएगा। एगो वोट भी नहीं मिलेगा। समझे कि नहीं?" उनकी बात को बीच में काटते हुए सिंह साहब बोल पड़े  "क्या बात कर रहे हैं भैया? गली खातिर त हम भी बहुत जुगाड़ लगाए हैं।गुप्त सूत्र से पता चल गया था कि इसका टेंडर नहीं निकलेगा।मंत्री जी से जैसे तैसे कहकर टेंडर निकलवाए हैं।"इस पर मुहल्ले वासी समझदारी दिखाते हुए बात संभालने के लिए बोल पड़े "इसके लिए आप दोनों लोगों को हम मोहल्ले वासियों के तरफ से बहुत-बहुत धन्यवाद"। मिश्रा जी सबको समझाते हुए बोले "भाई, सच चाहे जो भी हो पर गली तो बन रही है न? जिसके कारण भी हो पर टेंडर तो निकला है न?"
" अब एक बात पर सबको ध्यान देना पड़ेगा।" दार्शनिक अंदाज में चौरसिया जी ने कहा।  "वो क्या चौरसिया जी ?"
" जब गली में काम लगे तो सबको ध्यान देना होगा कि मानक के अनुसार गली निर्मित हो।ध्यान नहीं देने पर ठेकेदार गड़बड़ कर देता है। सरकारी कोरम पूरा कर देगा। देखते नहीं हैं का?आजकल  नवनिर्मित सड़कें छह महीना या साल भर से ज्यादा टीक नहीं पाते हैं ।निर्माण के समय गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता है। लूट खसोट धड़ल्ले से चल रहा है।ठेकेदार ज्यादा से ज्यादा पैसा बचाने की फिराक में रहता है। इस पर हम सबको ध्यान देना होगा।रोज रोज गली का टेंडर थोड़े निकलेगा।" बात में दम था इसलिए सभी मुहल्ले वासी एक स्वर से सहमती जताए ।
कुछ दिनों बाद गली निर्माण का कार्य शुरू हो गया।पर मोहल्ले वासियों के मिजाज पहले जैसे नहीं थे। किसी बात को लेकर आपस में अनबन हो गई थी। खुद को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की होड़ में उनके बीच जो आपसी प्रेम और भाईचारा था,वह नफरत व ईष्या के ताप से वाष्पीकृत हो चुका था।मनमुटाव के कारण कई लोग तो आपस में बोलचाल भी बंद कर चुके थे।आपस में ही गुटबाजी होने लगी थी।हैरानी तो यह थी कि इस शीतयुद्ध का सही वजह भी किसी को नहीं मालूम था।हालात ऐसे बन गए कि बात करना तो दूर, लोग एक दूसरे को देख मुंह फेर कर निकलने लगे।इसकारण गली निर्माण में कोई रूचि नहीं दिखाया।बड़े बुजुर्ग कह गए हैं- -घर टूटे तो गांव लूटे,गांव टूटे तो जेवार लूटे।आपसी मतभेद का फायदा हमेशा कोई तीसरा उठाता है।
गली की ढलाई संपन्न हो गई।पर काम गुणवत्तापूर्ण नहीं हुआ।कम गुणवत्ता वाले मटेरियल का इस्तेमाल हुआ था। दो सजग मुहल्लेवासी इस मसले पर सबको पुनः एकजुट करना चाहे पर सफलता नहीं मिली।कोई झुकने को तैयार नहीं था। आपत्ति के आवेदन पर हस्ताक्षर करने से भी लोग मुकर गए। मुहल्लेवासियों के नासमझी से खिन्न होकर मात्र दो लोग लिखित शिकायत दर्ज किए, तो दो जन अप्रत्यक्ष रूप से ठेकेदार के समर्थन में खड़े हो गये।इससे ठेकेदार को बहुत बल मिला।विरोध के बावजूद उसके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।घर का भेदी लंका ढाहे" कहावत हर युग में प्रासंगिक सिद्ध हुआ है,यहां भी हुआ।शिकायतकर्ता के शिकायत के आलोक में कार्यपालक पदाधिकारी और इंजीनियर गली का मुआयना करने आए।जांच-पड़ताल में उन्होंने स्वीकार किया कि गली निर्माण मानक के अनुसार नहीं हुआ। ठेकेदार भी कच्ची गोली नहीं खेला था।अधिकारियों को कैसे खुश रखना है। वह जानता था। जहां जहां शिकायत की अर्जी गई या जाने की आशंका थी, वहां वह पहले ही दान दक्षिणा देकर मामला सलटा चुका था।लोगों के दबाव को महसूसते हुए पुनःअधिकारीगण गली का मुआयना करने आए। कम गुणवत्ता की बात वो भी दुहराएं पर कार्रवाई के नाम पर कोरा आश्वासन देकर चले गए।हमेशा की तरह आम जनता की शिकायत कचरे के डिब्बे में डाल दिया गया।एक आदमी की बात सुनता कौन है?अकेली अंगुली क्या कर पाती है?पर जब सब अंगुलियां एक साथ होती हैं तो मुठ्ठी बंध जाती है,नामुमकिन भी मुमकिन हो जाता है।समूह की शक्ति से अच्छे अच्छों की होश ठिकाने लग जाते हैं।यहां तो समूह ही बिखर चुका था। हकीकत की जिंदगी में अकेला चना कभी भाड़ नहीं फोड़ पाता।हुआ वही जो हमेशा होता है। शिकायते फाइलों में दफन हो गई ।सड़क निर्माण के बाद भी गली में पानी जमने वाली समस्या सदाबहार बनी रही।यही नही जब बरसात हुई तो पानी सड़क पर पहले से कहीं ज्यादा जमने लगा। पानी के बीच से गुजरते वक्त लोग अक्सर मुंह बिचकाकर आते जाते दिखते।यह देखकर शिकायतकर्ता पांडे जी जिनका घर सबसे पहले था, व्यंग्य से मुस्कुराते हुए मन ही मन  कहते " जरूरत के वक्त सब लोग मुंह पर जाब लगा कर बैठे थे।सोचे होंगे पानी सिर्फ पांडे जी के  दरवाजे पर जमेगा।सिर्फ पांडे जी को ही दिक्कत होगी ।यह नहीं सोचे कि पानी जमेगा तो इस रास्ते से गुजरने वाले हर सख्स को दिक्कत होगी।अहंकार और लड़ाई झगड़े में सब लोग उलझे रहे।अब अपने अपने कपार पर सिर रखकर आए जाए या अपने अपने छत पर सब लोग हेलीपैड बनवा लें।
पता नहीं लोगबाग अपनी गलती महसूस किए कि नहीं।पर आपसी तालमेल और समझदारी की कमी का दुष्परिणाम सामूहिक रुप से पूरे मुहल्ले वासी भुगतते रहने के लिए अभिशप्त हो गए। अब पानी में गोता लगाए बगैर अपने घर तक कोई नहीं पहुंच सकता।सच,कभी-कभी ज्यादा पढ़े-लिखे लोग भी नासमझी का बेहतर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उसका जीवंत उदाहरण बबुआन  मोहल्ले के वासी थे।

*डुमरांव, बक्सर बिहार

 


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