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अच्छा लिखना कला है और कला साधना और अभ्यास मांगती है



चेन्नई। अंतरराष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन व शोध केन्द्र के निदेशक साहित्यकार डॉ. दिलीप धींग ने कहा कि अच्छा लिखना कला है और कला साधना और अभ्यास मांगती है। बिना साधना के श्रेष्ठ लेखक बनना संभव नहीं है। उपन्यासकार प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में 31 जुलाई को श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के जैन दर्शन विभाग की ओर से आयोजित ई-व्याख्यान में ‘जैनविद्या की लेखनकला’ विषय पर उन्होंने कहा कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य की समृद्धि में जैन साहित्य का बड़ा योगदान है। डॉ. धींग ने कहा कि अच्छे रचनाकार से मित्रता रखनी चाहिये, क्योंकि गुण भी संक्रमित होते हैं। डॉ. धींग ने कहा कि सच्चे साहित्यकार को संत और सिपाही की तरह जीना होता है। शहीद के रक्त की तरह लेखक की स्याही भी पवित्र होती है।  अतः साहित्यकार का सदैव सम्मान होना चाहिये। उन्होंने लेखनकला के विकास के लिए स्वाध्याय, अनुप्रेक्षा, श्रवण, पुनर्लेखन, पत्रलेखन आदि के अभ्यास पर बल दिया। अध्यक्ष प्रो. वीरसागर जैन ने कहा कि लेखनकला एक वरदान है, जो व्यक्ति को दीर्घजीवी बनाती है। संयोजक प्रो. अनेकांतकुमार जैन ने कहा कि लिखने से ज्ञान पक्का हो जाता है। विद्यार्थी लिखेंगे तो उत्तीर्ण होंगे। डॉ. कुलदीप कुमार ने धन्यवाद दिया और ऋषभ जैन ने संचालन किया। 


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