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स्वामी विवेकानंद और शिक्षा की धारणा



*सविता दास सवि

शिक्षा एक मात्र सम्बल है संघर्षपूर्ण जीवन में आगे बढ़ने का । यह वो ज्वलन्त शिखा है जो हमारे चेतन में सदा विद्यमान है बस देर है उसे पहचानने की । शिक्षा अभिव्यक्ति है उस ज्ञान की जो मनुष्य के मन में पहले से अंतर्निहित है। स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार शिक्षा से एक छात्र के नैतिक , मानवीय मूल्यों,निष्कपटता, आध्यात्मिक एवं सुस्वास्थ्य का विकास होना नितान्त आवश्यक है। शिक्षा ऐसी हो जो सिर्फ किताबों तक ही सीमित ना रहे बल्कि उसको व्यवहारिक जीवन में प्रयोग में भी लाया जा सके। शिक्षा का उद्देश्य किसी भी इंसान को आत्मनिर्भर बनाना होना चाहिए । जो ज्ञान हमे विद्यालय से मिले उससे  हम आत्मनिर्भर तो बने ही साथ ही समाज के विकास में भी पूर्ण योगदान कर सकें। स्वामीजी ने स्त्री शिक्षा के ऊपर भी  महत्व दिया था उनका मानना था कि एक स्त्री एक परिवार की नींव होती है अगर वह शिक्षित होती है उस परिवार की आनेवाली पीढ़ियाँ भी शिक्षित होती है और हम जानते है की परिवार ही समाज की सबसे अहम इकाई होती है। स्वामीजी का मानना था कि शिक्षा का प्रसार व्यापक हो और वह देश के हर नागरिक तक पहुंचे। हमारे समाज में फैले कुसंस्कार एवं अंधविश्वास को शिक्षा द्वारा ही दूर किया जा सकता है। स्वामीजी यही चाहते थे कि शिक्षा द्वारा भारतवर्ष के प्राचीन विश्वासों का पाश्चात्य के आधुनिक विश्वासों का एक सामंजस्यपूर्ण तालमेल बैठाया जा सके। स्वामीजी जी के शिक्षा के प्रति यह अनमोल विचार आज के परिपेक्ष्य में बिल्कुल सटीक है। शिक्षा तभी उपयोगी साबित होगी जब उसे व्यवहारिक प्रयोग मिलेगा । शिक्षा से ही मनुष्य का चारित्रिक निर्माण सम्भव है और मनुष्य का सही निर्माण ही राष्ट्र के निर्माण की नींव है।

*तेज़पुर ,असम

 


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