*अलका 'सोनी'
मैं शहर हूं
जागा हुआ रहता
रात भर हूं
चैन की नींदें
कहां भाग्य मेरे
व्यस्तता ही रहती
हमेशा साथ मेरे
चाहता हूं मैं भी
कभी हो सवेरा ऐसा
जब ना कोई
बेसबर हो
शांति भरी हो रातें
और सुनहरी सी
सहर हो
सड़कों पर ना हो
ये भागती गाड़ियां
अखबारों में भी
अमन की खबर हो
गांवों की वो सरलता
कहां से मैं लाऊं
वह मोहक हरियाली
खुद में कैसे सजाऊं
यहां तो समय की
रहती आपाधापी
सबको कहीं
पहुंचने की होती जल्दी
खेतों की हरीतिमा
नदियों की कल-कल
कहीं पीछे अपने
मैं छोड़ आया
अपनों का नेह,
सजीले चौखटों से
कब का हूँ मैं
मुंह मोड़ आया।
*बर्नपुर, पश्चिम बंगाल
अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ