*मोहित सोनी
प्रकृति का कहर है कोरोना,
असर है इसका,
बढ़ती जनसँख्या का संतुलित होना,
जब-जब प्रकृति का बिगड़ा संतुलन,
प्रकृति ने इसे सही करने का बनाया मन,
कभी भूकम्प, कभी चक्रवात, कभी बाढ़,
कभी लिया रूप महामारी का,
ऐसे उपचार किया बढ़ती जनसँख्या की बीमारी का,
मनुष्य ने समझा प्रकृति को खिलौना,
मनमानी की, खेल खेला घिनौना,
आम खाना था पर,
महंगा पड़ा बबूल को बोना,
कोरोना ने तबाही मचाई,
लाखों लोगों को पड़ा,
जान से हाथ धोना,
अब भी यदि नहीं सम्भले हम,
तो जाने और क्या-क्या पड़ेगा खोना,
प्रकृति का कहर है कोरोना,
असर है इसका,
बढ़ती जनसँख्या का संतुलित होना ।
*कुक्षी
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