✍️पुष्पा सिंघी
मानसून की प्रथम फुहार !
खोल रही स्मृतियों के द्वार !!
सजी रंगोली मृदु सपनों की ,
सावनी बूँदों की मधुर मनुहार !!
चूनर रंग-बिरंगी ओढ़ती मही
संवेदना की नाव बहती रही !
फैली स्याही , मिटे हैं आखर
बादलों से बात मन की कही !!
हरी चूड़ियाँ पहनकर इठलायी
मेंहन्दी की पत्तियाँ रंग लायी !
पायल छनकातीं पनिहारिनें ,
परदेसी की आहट दीं सुनायी !!
दर्पण में मुखड़ा लागे प्यारा
शुभ्र चन्द्रिका ने रूप संवारा !
अधरों पर गीति-छंद नर्तन ,
सावन पावन प्रीति-हरकारा !!
*कटक
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