✍️रश्मि वत्स
राह तके मोरे नैन ।
मिलत नही मोहे चैन ।
आकर अब तो दर्श दिखाजा ,
ओ निर्मोही मन मोरा बेचैन ।
भाए न मोहे अब सखिया,सहेली ।
जोड़ी तुम संग जबसे प्रीत की डोरी ।
नैनन अखियाँ नीर बहाए ,
विरह की अग्नि अब मोहे जलाए।
रंगीला सावन भी मरूस्थल लागे ।
मनोहर राग अब न मोहे भाते ।
प्रेम की शीतलता हृदय में मेरे,
कंटीले शूल से चुभते जाते ।
दग्ध विरह की इस वेदना का ।
अंत होगा जाने कब कृंदन का ।
तोरे आने पर ही साजन,
आगमन होगा मलहज सुगंध का।
*मेरठ (उत्तर प्रदेश)
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