Subscribe Us

सावन बना मरूस्थल



✍️रश्मि वत्स 

राह तके मोरे नैन ।
मिलत नही मोहे चैन ।
आकर अब तो दर्श दिखाजा ,
ओ निर्मोही मन मोरा बेचैन ।

भाए न मोहे अब सखिया,सहेली ।
जोड़ी तुम संग जबसे प्रीत की डोरी ।
नैनन अखियाँ नीर बहाए ,
विरह की अग्नि अब मोहे जलाए।

रंगीला सावन भी मरूस्थल लागे ।
मनोहर राग अब न मोहे भाते ।
प्रेम की शीतलता हृदय में मेरे,
कंटीले शूल से चुभते जाते ।

दग्ध विरह की इस वेदना का ।
अंत होगा जाने कब कृंदन का ।
तोरे आने पर ही साजन,
आगमन होगा मलहज सुगंध का।

*मेरठ (उत्तर प्रदेश)


 


अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.com


यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ