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सात जन्मों का साथ 



*डॉ रमेशचन्द्र


मेरी अर्द्धांगिनी, जो वास्तव में पूर्णांगिनी है, कई  वर्षों से व्रत -उपवास के चक्कर में पड़ी हुई है। मैं उसे हमेशा से समझाता आ रहा हूं,  किंतु आप जैसे भले लोग तो जानते ही हैं कि पतिपरायण पत्नी ऐसी टुच्ची बातों पर कान नहीं देती है, क्योंकि यह उनकी आन -बान और बची खुची शान के खिलाफ होता है। इसीलिए मेरी बेशकीमती बात को उसने पतंग की तरह हवा में उड़ा दिया। 
इस तरह व्रत -उपवास के चक्कर में वह सूख कर कांटा हो गयी,  किंतु इस बात का उसे जरा भी गम ज़रा नहीं। उसे इस चरम स्थिति में देख कर मैं सूख कर कांटा होने जा ही रहा था कि एकाएक मुझे ध्यान आ गया कि मैं भी उसके जैसी स्थिति में आ गया तो उसे कौन संभालेगा। अतः मैंने इस इरादे को तुरंत कैंसिल कर दिया। 
मेरी धर्मपत्नी के निरंतर व्रत -उपवासों से मुझे भय लगने लगा कि कहीं ये कोई अलौकिक शक्ति न प्राप्त करले, वरना अपने 'राम 'का तो कोई ठिकाना ही नहीं है। आखिर एक दिन मैं उस धर्मप्राण पत्नी पर उबल ही पड़ा और संपूर्ण आवेश में आकर बोला - "  तुम्हें क्या मिलता है इतने सारे व्रत-उपवास करके।  इतने व्रत-उपवास  करते देख कर तो भगवानजी ने घबरा कर तुम्हारी सीट स्वर्ग में "रिज़र्व " कर दी होगी।
इस पर रानी साहिबा बोली, -  "मैं स्वर्ग की सीट प्राप्त करने के लिए थोडे़ ही व्रत-उपवास कर रही हूं ? "
"तो फिर किसलिए  कर रही हो? "मैंने विस्मय से आंखे चौडी़ कर के प्रश्न दागा। 
"वो मैं इसलिए कर रही हूं ताकि मुझे जन्म -मरण के चक्रव्यूह से छुटकारा मिल सके।"
मैं यह सुन कर मैं घबरा गया और घबराहट भरे स्वर में बोला - "  डार्लिंग! यदि तुम मोक्ष प्राप्ति की इच्छुक हो तो मेरा क्या होगा? मेरा तो कोई ठौर -ठिकाना ही नहीं रहेगा? आखिर मेरा होगा क्या?  "
"क्या होगा का अर्थ!  "
रणभवानी ने आंखें तरेरते हुए कहा तो मेरी आत्मा कांप उठी। मैने लड़खड़ाते हुऐ टूटे -फूटे शब्दों में कहा -  "मेरे कहने का आशय यह  है कि हमने विवाह के समय जो सात जन्मों में साथ रहने की कसम खाई थी,उसका क्या होगा? "
"तो उन सात जन्मों में तुम अकेले ही चक्कर लगाते रहना और खाई हुई कसम को निभाते रहना.... ! "
यह सुन कर मैं गश खाकर गिर  पडा़  और अभी भी बेहोश  हूं....। 
 *इंदौर म.प्र.


 


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