✍️बलजीत सिंह
गरज-गरजकर आये बादल,
हवा हिलाये पेड़ों की चोटी ।
पंख फड़फड़ाने लगे परिन्दें ,
जब गिरी धरा पर बूंदें मोटी ।।
चिड़ियां चहकी गदराई बेल ,
हवा-पानी का अद्भुत मेल ।
सुरूर सावन का ऐसा छाया ,
बिल से बाहर अजगर आया ।।
बकरी-मुर्गा मुड़-मुड़ देखे ,
कुत्ता खाये भीगी रोटी ।।
पंख फड़फड़ाने लगे परिन्दें ,
जब गिरी धरा पर बूंदें मोटी ।।
गिलहरी सुने कोयल का गाना ,
चूहा खाये छुप-छुपकर दाना ।
मोर मस्ती में हुआ मग्न ,
तितली रानी का भीगा बदन ।
आसमानी बिजली कड़कने पर ,
जोर से भागी हिरण छोटी ।।
पंख फड़फड़ाने लगे परिन्दें ,
जब गिरी धरा पर बूंदें मोटी ।।
पानी बरसा फसल लहराई ,
नदी-झरनों ने ली अंगड़ाई ।
उठे सागर में लहरें तेज ,
इंद्रधनुष की सतरंगी सेज ।।
टूटी डाल पर थिरक-थिरककर ,
नाच दिखाये बंदरिया खोटी ।।
पंख फड़फड़ाने लगे परिन्दें ,
जब गिरी धरा पर बूंदें मोटी ।।
गरज-गरजकर आये बादल,
हवा हिलाये पेड़ों की चोटी ।
पंख फड़फड़ाने लगे परिन्दें ,
जब गिरी धरा पर बूंदें मोटी ।।
राजपुरा(सिसाय),जिला -हिसार ( हरियाणा )
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