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प्यार की परिभाषा



✍️संजय वर्मा 'दृष्टि'

प्यार की पवन

चलती तो प्यार

उड़ता

जैसे पतंग उड़ती।

चलती जब पवन

प्रेयसी के मकान

के ऊपर चक्कर

लगाती रंग बिरंगी पतंगों में

निहारती प्रेम के रंग में रंगी

पतंग को।

उड़ती हुई पतंगों में

ये खास पतंग दे जाती

प्रेम संदेश।

पतंग के रूप में

प्यार का संदेश 

बार बार मंडरा कर

आकाश में अपना

वर्चस्व दिखाती।

पतंग ये 

बतलाती मैने

पा लिया प्यार

क्योकिं कोई निहार रहा

छत से मुझे।

जब कटती तब

समझ आती

प्यार की परिभाषा

और ये भी समझ आता

प्यार करना और

पतंग उड़ाने में

आभास का अंतर

जो बंधा तो है

उम्मीदों और आस की

डोरी से

जो पल भर में

टूट जाता।

टूटने,छूटने से

विरहता की वेदना

के मनोभाव

लग जाते सीधे दिल को।

प्रेम के ढाई आखर को

फिर से संजोने लग कर

निहारता अब

सूने आकाश को

बिन पतंग।

 

*मनावर(धार)

 


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