✍️संजय वर्मा 'दॄष्टि '
पेड़ों की पत्तियां झड़ रही
मद्धम हवा के झोकों से
चिड़िया विस्मित चहक रही
मद्धम खुशबू से
हो रहे पहाड़ के गाल सुर्ख
पहाड़ अपनी वेदना किसे बताए
वो बता नहीं पा रहा
एक पेड़ का दर्द
लोग समझेंगे
बेवजह राइ का पर्वत
पहाड़ ने पेड़ो की
पत्तियों को समझाया
मै हूँ तो तुम हो
तुम ही तो कर रही
मौसम का अभिवादन
गिरी नहीं तुम बिछ गई हो
और आने वाली नव कोपलें
जो है तुम्हारी वंशज
कर रही आने इंतजार
कोयल मीठी राग अलाप
लग रहा वादन शहनाई का
गुंजायमान हो रही वादियाँ में
गुम हुआ पहाड़ का दर्द
जो खुद अपने सूनेपन को
फूलों की चादर से ढाक रहा
कुछ समय के लिए
अपना तन.
*मनावर जिला धार(मप्र )
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