Subscribe Us

पहाड़ 






 ✍️संजय वर्मा 'दॄष्टि '

 

पेड़ों की पत्तियां झड़ रही 
मद्धम हवा के झोकों  से 

चिड़िया विस्मित  चहक रही 

मद्धम खुशबू से 

हो रहे पहाड़ के गाल सुर्ख 

पहाड़ अपनी वेदना किसे बताए

वो बता नहीं पा रहा 

एक पेड़ का दर्द 

लोग समझेंगे 

बेवजह राइ का पर्वत

पहाड़ ने पेड़ो की 

पत्तियों को समझाया 

मै  हूँ तो तुम हो 

तुम ही  तो कर रही

मौसम का अभिवादन 

गिरी नहीं तुम बिछ गई हो  

और आने वाली नव कोपलें

जो है तुम्हारी वंशज 

कर  रही आने इंतजार 

कोयल मीठी राग अलाप

लग रहा वादन शहनाई का 

गुंजायमान हो रही वादियाँ में 

गुम हुआ पहाड़ का दर्द 

जो खुद अपने सूनेपन को 

फूलों की चादर से  ढाक रहा 

कुछ समय के लिए

अपना तन.  

*मनावर जिला धार(मप्र )


अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.com


यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ