*डॉ.अहिल्या तिवारी
शिखर पर बैठ कर उसूलों के देख लिया
कामयाबी की प्यास लगती है जिंदगी
पाने से अधिक खोने का हिसाब है, मगर
कभी पूजा, कभी अरदास लगती है जिंदगी।
भीड़ में खोजती रहती अपनो की सूरत
तो महफिल में गज़ल लगती है जिंदगी
ताउम्र गुजर जाती है गिले शिकवे में बस
चंद लफ्ज़ों की कहानी लगती है जिंदगी।
जीत की खुशी है हार कर भी जमाने में
क्यो हर पल खिलाड़ी लगती है जिंदगी
हजार बार ठहरे दुनिया के सराय में
फिर भी अंजान मुसाफिर लगती है जिंदगी।
यादों के झरोखों मे झांक कर देखा तो
कभी अपनी, कभी उधार लगती है जिंदगी
कितना कुछ सिखा जाती हैं पल भर में
नादान हो कर भी सयानी लगती है जिंदगी।
*सुंदर नगर रायपुर
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