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मुक्तक



*अ कीर्तिवर्द्धन

वक्त की नजाकत को समझने का प्रयास करता हूँ,

परिवार के सांचे मे खुद ढलने का प्रयास करता हूँ।

भूला देता हूँ अपना अहम्, रिश्ते बनाये रखने को,

बस यूँ हार कर भी जीत जाने का प्रयास करता हूँ।

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माँ की ममता धन दौलत की, मोहताज नही होती,

रंग रूप काला या गोरा, उसकी भी बात नही होती।

वात्सल्य भीतर से आता, माँ के भाव जताते देखो,

झोपड पट्टी जैसी ममता, महलों की औकात नही होती।


*मुजफ्फरनगर

 


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