*भानु प्रताप मौर्य 'अंश'
मेघ तुम्हें अब आना होगा।
अवनी की तपन बुझाना होगा।।
मुरझाये वृक्षों पर फिर से ,
नव प्रसून मुस्काना होगा।।
उष्णता से व्याकुल तन मन।
पशु - पक्षी सारे प्राणी जन।।
तुम्हें व्योम से जीवन रूपी ,
मेघपुष्प - बरसाना होगा।।
सुलग रही नित निदाघ से भू।
जल जायेगें कर यदि ले छू।।
परिस्थितियों को समझो जीवन,
कोई नहीं बहाना होगा।।
छाया में भी छाँव नहीं है।
कौओं की भी काँव नहीं है।।
हे जलधर! चातक का तुमको,
रो कर मान बचाना होगा।।
कोई नंगे पाँव नहीं है।
और नदी में नाव नहीं है।।
पावस का आगमन पयोधर!
तुम्हें नहीं झुठलाना होगा।।
झुलस रही हैं फसलें सारी।
सूख रही केसर नव क्यारी।।
हे प्रिय! इन पर निर्मल जल की,
शीतल फुहार छिड़काना होगा।।
*बाराबंकी उ.प्र.
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