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मन-मन्दिर में है बसी, माँ  तेरी  तस्वीर



*राजेश जैसवारा 'राज जौनपुरी '








मन-मन्दिर में है बसी, माँ  तेरी  तस्वीर।

तुझसे बढ़कर है नहीं, कोई पीर फ़क़ीर।।

 

माँ घर की सागरसुता, माँ ममता की खान।

माँ जग में अनमोल है, कोई  न  माँ समान।।

 

तुझसे ही सांसे जुड़ी, माँ तू पहला प्यार।

तुझ बिन मैं कुछ भी नहीं, तू मेरा संसार।।

 

खाकर  आधा  पेट भी, रहती  है  खुशहाल।

दुख विपदा अरु कष्ट में, बन जाती माँ ढाल।।

 

कैसी भी विपदा पड़े, कितने  हों  मजबूर।

माँ का मुखड़ा देख कर, हो जाते दुख दूर।।

 

माँ ईश्वर का रूप है, माँ ममता का नाम।

माँ से ही संसार है, माँ  ही  चारो  धाम।।

 

शान्ति मिली मन को नहीं, घूमा चारो धाम।

चरणों में माँ-बाप के, मिला  मुझे  आराम।।

 

मात-पिता की बात का, रखता है जो मान।

सुख समृद्धि उसे मिले, मिले मान सम्मान।।

 

दुख देकर माँ-बाप को, क्यों लेता अभिशाप।

सेवा  कर  माँ-बाप  की,  धुल  जाएंगे  पाप।।

 

बड़े बुजुर्गों का कभी, मत करना अपमान।

ये ही  घर की  नींव हैं, ये ही  घर  की शान।।

 

दादी सी है डांटती, माँ  से  करे दुलार।

बहना तू अनमोल है, ईश्वर का उपहार।।

 

बेटी से ही तो हुआ, घर में  है उजियार।

खुशियाँ दे सेवा करे, सदा बाँटती प्यार।।

 

मिट्टी की सोंधी महक, पीपल  की वो छाँव।

निशदिन मुझे पुकारता, अपना प्यारा गाँव।।

 

बच्चों पर माँ-बाप का, रहा नहीं अधिकार।

ज़रा-ज़रा  सी  बात  पर,  देते  हैं  दुत्कार।।

 

मन्दिर-मस्ज़िद से सभी, कट जाते जो पाप।

गीता में फिर कर्म का, कृष्ण करें क्यों जाप।।

 

*प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

 











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