✍️कीर्ति शर्मा
सफेद साड़ी, सफेद बाल, मध्यम कद , चेहरे पर झुर्रियां और एक आकर्षक व्यक्तित्व, यह पहचान थी उस देवी की जिसे कॉलोनी के लोग चाची के नाम से जानते थे। चाची घर के बाहर एक चार पाई पर दिन भर बैठी रहती थी और घर की सब्जी, दालें साफ़ करती रहती। आते-जाते लोग चाची के हाल-चाल पूछते हुए जाते और चाची भी उनके और उनके परिवार के बारे में पूछ लेती, कुछ हिदायतें भी दे देती। सबको चाची से बात करना अच्छा बहुत लगता था।
मैं जब इस कॉलोनी में आई तब चाची को देखकर अच्छी अनुभूति हुई… माँ जैसा एहसास हुआ। मैं ऑफिस से घर और घर से ऑफिस जाते समय चाची को प्रणाम करती हुई जाती थी। कभी-कभी ऑफिस की थकान जब बहुत बढ़ जाती थी तब उनके पास बैठकर अपना मन भी हल्का कर लेती थी। घर की समस्याओं के बारे में चर्चा करती, बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में चर्चा करती। वह उस समय प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरती थी, तब मुझे ममता की छाँव का एहसास होता और वह मेरी सब समस्याओं का निवारण क्षण भर में कर देती थी और प्यार भरी हिदायतों की पोटली दे कर मुझे घर भेज देती। मैं ऑफिस से जब कभी लेट होती तो चाची मेरे बच्चों का ध्यान रखती। यह चाची नाम की शख्सियत मुझे बहुत संभल देती थी।
चाची हंसते-मुस्कुराते सब काम करती रहती थी। गर्मी में चाची पेड़ की छाँव के नीचे चारपाई लगा लेती , सर्दियों में धूप में रख लेती और बारिश में बरामदे में चारपाई रख लेती, पर कभी घर के अंदर हमने उन्हें जाते नहीं देखा। किसी ने जानने की कोशिश भी नहीं की, कि चाची घर के अंदर क्यों नहीं जाती। सबको लगता था, बुजुर्ग महिला है और घर से ज्यादा बाहर अच्छा लगता होगा। बाहर चहल-पहल भी रहती है, उससे उनका मन लगा रहता होगा। हमने उनके परिवार को यदा-कदा ही देखा था पर परिवार के बारे में जानने की कोशिश नहीं की।
मेरे मन में चाची के परिवार के बारे में जानने की उत्कंठा हमेशा बनी रहती थी और इसी जिज्ञासा के चलते एक दिन मैंने चाची से पूछ ही लिया।
“चाची आप अंदर क्यों नहीं जाती?”
चाची के हंसते-मुस्कुराते चेहरे पर, आंसुओं की धार बह निकली। जैसे मैंने उनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो। मुझे लगा किसी ने उनसे इस बारे में कभी कुछ पूछा ही नहीं इसलिए मेरी पूछते ही वह रोने लगी और अपनी दुख भरी दास्तां बताने लगी।
उनकी बहू अमीर घर की लड़की है। उसे चाची के तौर-तरीके पसंद नहीं थे इसलिए एक दिन चाची को पुराना सामान समझ कर घर से बाहर निकाल दिया और बेटे के बहुत समझाने पर उन्हें दो वक्त का खाना और एक चारपाई दे दी गई। चाची बोली, “मेरी बहू मुझे मेरे बेटे और पोते-पोतियो से मिलने भी नहीं देती।”
मैंने फिर सवाल किया, “ तो आप यहां रहती ही क्यों हो? किसी वृद्धा आश्रम मैं चली जाइये।” लेकिन मां की ममता ने चाची को रोक रखा था। आते-जाते अपने बेटे को देख लेती थी इसी में उन्हें संतुष्टि मिल जाती थी। उनकी यह दुख भरी बात सुनकर मेरा मन व्याकुल हो गया। आज के समय में कोई ऐसा कर भी सकता है, यह सोच कर मेरा मन घृणा से भर गया। मैं चाची को प्रणाम कर धीरे-धीरे घर की तरफ बढ़ रही थी चाची का चेहरा आंखों के सामने से ओझल नहीं हो रहा था।
*राजुला,गुजरात
अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ