✍️रश्मि वत्स
माटी की वो सौंधी खुशबू
जब तन-मन को महकाती है।
माँ के हाथों की रोटी की
याद बहुत फिर आती है ।।
तपिश सहनकर चूल्हे की
भोजन सभी को खिलाती है ।
संतुष्ट कर अपने भोजन से
स्वयं तृप्ति पा जाती है ।।
खिलते चहरे देख बच्चों के
पीड़ा स्वयं की भूल जाती है ।
माँ तो आखिर माँ होती है
अन्नपूर्णा तभी कहलाती है ।।
चाहे सुख हो ,चाहे दुख हो
चाहे परिस्थिति हो विकट अपार।
मातृत्व की छांव से अपने
महकाती सदैव ही घर संसार ।।
समर्पण माँ के को कभी न भूलना
ईश्वर रुप में माँ है साक्षात भगवान।
सदैव करो तुम माँ का वंदन
तर जाओगे तुम नादान ।।
*मेरठ (उत्तर प्रदेश)
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