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खत



✍️अलका 'सोनी'

 

मेरे जीवन में 

तुम्हारा आना, मानों

नये वसन्त और

अनगिनत खुशियों का

था आना

 

शांत हृदय में

कहीं गहरे सोये

भावों का लहरों की

तरह उमड़कर आना

और फिर छूकर

चुपचाप चले जाना

 

तब कहाँ था इतना

खुलापन और साधन

वर्जनाओं, संकोच के

पहरे ने पथ को रोक दिया

संस्कारों ने बढ़ने से 

टोक दिया

 

अपनी बातें कभी

कह भी नहीं पायी

लिखे थे जो ख़त

उन्हें भेज न पायी

 

लेकिन रखा है अब तक

उनको मैंने सम्हाल कर

मन की  संदूक में 

कहीं दबाकर

 

जीवन के राहों में

चलते-चलते

मिल जाओ कहीं

मुझसे कभी

अब इक पल भी

देर किये बिन

चाहूंगी तुम्हें दे

देना वो सारे प्रतीक

जो थे बस तुम्हारे लिए.....

 


*बर्नपुर, पश्चिम बंगाल

 


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