✍️सुजाता भट्टाचार्य
औरत बन जन्में, जब इस जग में हम,
ना समझे खुद को कभी किसी से कम।
अपनी हिम्मत,अपनी विद्वत्ता में न रहे कभी कम।।
किया ना जब प्रकृति ने कोई भेदभाव,
फिर क्यो सहे,इसे हम चुपचाप?
'मां' बन दिया हमने जग को नया प्रकाश,
अपनी शक्ति,अपनी कर्मठता का करो विकास।
हां,रखो अपनी 'शक्ति' पर अटल विश्वास।
छूटे ना कभी विधाता की आस्था पर आस,
जगाओ दिल में ज्ञान का नया उच्छास।।
हैं हम तो वैसे ही जैसे कीचड़ में कमल,
ज्यों धरती पर उगे दुर्वा दल।
चले हम पथ पर अपने,सदा ही पैदल ।
सदा ही चले हम पैदल,भर हृदय में बल।
हां,सदा रक्खे हम उच्च सदा अपना मनोबल।
'स्वयंसिद्धा' बन,बने हम सदा सफल।
समझे ना कभी अपने को निर्बल।।
अपने स्त्रीत्व पर,अपने आप पर करो सदा गर्व,
जिओ जीवन ऐसे,बने हर पल इक पर्व,
करो स्वयं पर गर्व,जीवन बन जाए पर्व।।
नई दिल्ली
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