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जगत विद्रूपताओं का यहां अनुपम ठिकाना है



*प्रदीप ध्रुव भोपाली

जगत विद्रूपताओं का यहां अनुपम ठिकाना है।
परन्तु इस जगत में रहकर, सबसे ही निभाना है।

सगे करते दग़ा फिर भी,मगर दिल से हमारे हैं।
चले संघर्ष की राहें,कभी दिल से न हारे हैं।
हमें तो आजमाना है,भले उनका जमाना है।
जगत विद्रूपताओं का, यहां अनुपम ठिकाना है।


कभी मीठे लगे नाते,कभी लगते वहीं खारे।
उन्हीं के संग रह जीते, उन्हीं के संग रह हारे।
किसी कीमत बना रखना,भले मुश्किल उठाना है।
जगत विद्रूपताओं का यहां अनुपम ठिकाना है।

ये स्वार्थ से जुड़े नाते,ये दुनिया ही निराली है।
इन्हीं से काम लेना है, इन्हीं के संग दिवाली है।
कभी अनबन भी हो जाए,कभी हंसना हंसाना है।
जगत विद्रूपताओं का यहां अनुपम ठिकाना है।
*भोपाल मध्यप्रदेश


 


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