✍️सुरेश शर्मा
भारत देश हमारा प्यारा सा ,
जिससे अपनेपन से लथपथ ;
भीगी-भीगी खुश्बू वाली महक ,
हमे भाव विभोर करती है ।
मिट्टी से जिसके सोंधी-सोंधी महक ,
हमे अपनी ओर आकर्षित करती है ।
नई इंडिया की नही हमारे दिल में ,
भारत की पुरानी संस्कृति बसती है ।
इंडिया नाम के सम्बोधन से हमे ,
परायेपन की हल्की सी बू टपकती है ।
विदेशी लिबास में सजी लिपटी ,
स्वदेशी होने की कमी खटकती है ।
हमे दूसरों के दिए नाम वाले इंडिया में ,
अपनी वेद पुराण और शास्त्रों वाली ,
हंसती गाती सात सुरों में गाने वाली ;
भारत की अनुपस्थिति खलती है ।
पहाड़ी झरनों की झीनी-झीनी फुहारों का ,
ब्रह्मपुत्र सा विशालकाय सीने वाला ;
पावन पवित्र माँ गंगा वाली धरती का ,
कल कल स्वर में गीत गाएं नदियों का ;
हमारे कानों में संगीत खनकती है ।
इंडिया की अंग्रेजी की दूरत्व वाली नहीं ,
हम सब को एक डोर मे पिरोने वाला ;
अपनत्व वाला भारत हम सब में बसती हैं ।
*नूनमाटी गुवाहाटी (असम)
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