✍️कल्पना गोयल
मां की गोद में सिमटी
उस वात्सल्य की छाया में
महसूस करती हूं
सदैव एक सुरक्षा चक्र
और करती हूँ एक कोशिश
उन अहसासों को कागज पर उतारने की,
मगर हां! मैं कविता नहीं लिखती!!
गाती हूं गीत उस बचपन के
जहां खेलती थी नादानियां
शैतानियां रग रग में
नहीं था कोई रंज
मन की कोरी सतह पर
करती हूं एक कोशिश
उन मधुर यादों को कागज पर उतारने की
मगर, हां! मैं कविता नहीं लिखती!!
दबे पांव आया था यौवन
ना जान सकी थी असलियत
इस दुनिया की, देखा था प्रेम को
कुछ हकीकत में ,कुछ पन्नों में
फिर भी, करती हूं एक कोशिश
उन जज्बातों को ,कागज पर उतारने की
मगर,हां! मैं कविता नहीं लिखती!!
अनुभूत जगत् की सत्यता को
आंक सकी थी, बस कुछ हद तक ही
पूरा सच आखिर जान भी कौन सका है
फिर भी, करती हूँ एक कोशिश
उन संघर्षों को, कागज पर उतारने की
मगर, हां! मैं कविता नहीं लिखती!!
मंजिल को पा सकना
इतना आसान भी नहीं ,लेकिन
लक्ष्य पर डटे रहना भी तो कम नहीं
कदम बढ़ाकर उठाती हूं दिशा में
फिर भी, करती हूं सतत कोशिश
उन लम्हों को, कागज पर उतारने की
मगर, हां! मैं कविता नहीं लिखती!!
जिंदगी के उसूल अपने
देख लेते ना जाने कितने सपने
सच कभी होते नहीं फिर भी
करती हूँ,एक कोशिश उन ख्वाबों को
कागज की धरा पर उतारने की
मगर ,हां! मैं कविता नहीं लिखती!!
कर्म ही तो पूजा है मेरी
धर्म भी है और ईमान भी
निस्वार्थ भाव से करती हूं जब मैं
एक असीम संतोष पाती
फिर भी, करती हूं एक कोशिश
कर्मठता को कागज पर उतारने की
मगर, हां! मैं कविता नहीं लिखती!!
जीवन को जीती हूं हर पल
रखती हूं धरा पर अपने कदम
और नभ को छूने का ख्वाब देखती हूं
फिर भी, करती हूँ एक कोशिश
कल्पना को धवल पन्नों पर उतारने की
मगर, हाँ! मैं कविता नहीं लिखती
हाँ!कविता नहीं लिखती!!
*जयपुर
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