*बी. एल. व्यास
गुरु पूनम का पर्व है, मन मे भर उल्लास।
प्रेम सहित पूजन करें, गुरुजी स्वयं प्रकाश।।
माटी के पुतले नहीं, गुरु है प्रबल विचार ।
जीवन में जिसने गहा,पाया हर्ष अपार।।
सत्ता गुरु की दिव्य है, लीला अपरम्पार।
सूक्ष्म रूप मे सब जगह, इनका ही विस्तार ।।
गुरु करुणा से हैं भरे,रिद्धि सिद्धि भण्डार।
श्रद्धा शिष्यों में रहे, तो पकड़े पतवार।।
देह सभी की भिन्न है, अन्तर मे इक आग।
सद्गुरु कब से कह रहे, मानव अब तो जाग।।
चौथा जो अध्याय है, गीताजी का बाँच।
चौंतीस नम्बर श्लोक में, सब लिक्खा है साँच।।
कालचक्र उल्टा चला, ठग विद्या सब ओर।
बहुत परखना ध्यान से, गुरु की नौका डोर ।।
गुरुमुख से जो भी मिले, वही कहाये मन्त्र।
पुस्तक पढ़ने के लिए, मानव सभी स्वतंत्र ।।
*उज्जैन
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