*सुरेश शर्मा
गुरू के है नाम और परिभाषा अनेक ,
पहला गुरू 'माँ ' जिसने पृथ्वी पर मुझे ;
मनुष्य बनकर रहने की कला सिखाई ।
मैं तो था एक मिट्टी का अस्तित्वहीन ढेला,
मानवता के ढांचे में माँ ने ही मुझे ढाला ।
सर्वप्रथम उस माँ रूपी गुरू को प्रणाम ।
दूसरा गुरू 'धरती माँ ' जिसने मुझे ,
प्रकृति की गोद में पलना सिखाया ।
नदी और झरनों की बहती धाराओं से ,
सिर्फ आगे हीं बढते रहने का पाठ पढ़ाया ।
पशु पक्षियों सा मधुर स्वर में गाना सिखाया ,
इसलिए धरती माँ रूपी उस गुरू को प्रणाम ।
तीसरा गुरू वह 'प्रिय पिता' जिन्होंने मुझे ,
बलिष्ठ परिश्रमी और साहसी बनना सिखाया ।
निर्बल कमजोर असहायों की हक के लिए ,
हमेशा निष्पक्ष और डटकर रहना सिखाया ।
मुझे अपना नाम देकर मुझे अस्तित्व में लाया ,
उस भगवानरूपी पिता गुरू को हृदयस्पर्शी प्रणाम ।
चौथा गुरू' शिक्षक' जिनके अमृत ज्ञान ने ,
मेरे जीवन को ज्ञानी और प्रकाशमयी बनाया ।
मेरी अज्ञानता को दूर कर विद्वान बनाकर ,
दुनिया को ज्ञान बांटने की कला सिखाया ।
अच्छे बुरे की ज्ञान से मुझे अवगत कराया ,
उस ज्ञानदाता की चरणों में बारम्बार प्रणाम ।
*गुवाहाटी (असम)
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