*कीर्ति शर्मा
“रानी ! रानी ! उठो स्कूल का टाइम हो गया है!!”
“जल्दी करो बेटा ! तुम रोज़ ऐसे ही करती हो !”
“उठ गई माँ। चाय कहाँ है?”
“अरररे !!! नहाने का पानी कहाँ है !!!”
“ माँ , मेरे कपड़े, जूते, सब कुछ कहाँ हैं!!!”
“ रानी , यह लो तुम्हारी चाय | तुम्हारे कपड़े बाथरूम में हैं , और जूते बाहर। तुम कब ज़िम्मेदार बनोगी ?”
“ माँ अब फिर शुरू मत होना। मैं लेट हो रहीं हूँ।’ कहकर रानी बाथरूम में चली गयी।
“माँ , मैं स्कूल जा रही हूँ।”
“ अरे रानी टिफ़िन तो लेती जा।”
“ माँ लेट हो रहा है। मैं कैंटीन में खा लुंगी। “ कहकर भाग गयी।
सविता, रानी की इस हरकत से बहुत परेशान होती । रानी बिंदास, मस्तीखोर, लापरवाह और खुशमिज़ाज़ लड़की थी। उसकी मस्ती और लापरवाही से सविता हमेशा परेशान रहती थी। रानी कक्षा बारवीं की छात्रा थी। बड़ी होने के बाद भी काम-काज में जीरो , माँ की मदद तो दूर की बात है, खुद के लिए एक गिलास पानी भी नहीं लेती थी। सहेलियों के साथ पढाई, टीवी, बस इसमें उसके दिन - रात बीतते थे। पढाई में अच्छी थी, कक्षा में चौथे पांचवें स्थान पर रहती थी। पढाई के साथ ज़िम्मेदारियों और कर्तव्यों को निभाना भी ज़रूरी होता हैं , यह वो नहीं समझती थी।
“मनोज , तुम रानी को कभी कुछ नहीं कहते ! वह बहुत लापरवाह है। आज लेट उठी तो टिफ़िन भी छोड़ गयी। ” यह सुनकर मनोज हंसने लगा।
“तुम दिन - भर उसके पीछे मत पड़ा करो, सब कर लेगी। बच्ची है, सीख जाएगी। अब मुझे नाश्ता मिलेगा या बेटी के चक्कर में मुझे भूखा जाना पड़ेगा ?”
“तुम ना बस ऐसे ही कहते हो। तुम्हारे लाड - प्यार ने ही रानी को बिगाड़ रखा है। बैठो नाश्ता ला रही हूं |”और नाश्ता करके मनोज ऑफिस चला गया।
सविता अपने दैनिक कामों में लग गयी। दैनिक कामों में उसका मन नहीं लग रहा था पर करने तो थे ही।
“सविता ! सविता !”
“अरे कामिनी, तुम आज इस तरफ! कैसे आना हुआ?” कामिनी, सविता की बहुत अच्छी सहेली थी।
“ कुछ नहीं, आज तुम्हारी याद आ रही थी। तो सोचा तुमसे मिल आऊं। पर तुम्हें देखकर ऐसा लग रहा है, जैसे तुम मुझे देख कर खुश नहीं हो।”
“ अरे नहीं बहुत खुश हूं। चल, अंदर बैठकर बातें करते हैं। मैं थोड़ा परेशान हूं।”
“ किस बात से?”
“ रानी को लेकर और क्या ? चल, एक- एक कप चाय के साथ बातें करते हैं।”
सविता ने चाय बनाई। दोनों सहेलियाँ बातों में व्यस्त हो गई। सविता ने कामिनी को रानी की लापरवाही और अपनी चिंता का विषय बताया। कामिनी ने सविता को ना जाने क्या कहा और सविता रानी को जिम्मेदार बनाने की मुहिम में लग गई।
एक दिन रानी स्कूल से घर लौट कर आई और “ माँ ! माँ ! कहाँ हो तुम? मुझे भूख लगी है। खाना दे रही हो या मैं बाहर खाकर आऊं।” कहकर रानी ने अपने सब सामान को इधर-उधर फेंका और सोफे पर लेट गई। टीवी ऑन किया और इंतजार करने लगी पर माँ नहीं आई। “माँ सुन रही हो या नहीं, क्या कह रही हूं। ” और बिना खाए यह कह कर सो गई।
शाम को उसने फिर माँ को आवाज लगाई पर माँ नहीं आई। उसने माँ को घर के बाहर ढूंढा पर माँ नहीं मिली।
“ पापा आप ऑफिस से आ गए। पता नहीं माँ कहाँ चली गई। मिल नहीं रही।”
“ सविता ! सविता! कहाँ हो?” पर सविता का कुछ पता नहीं लगा। दोस्त - रिश्तेदारों को फोन लगाया पर सविता की कोई खबर नहीं थी। रानी भी आज कुछ परेशान लग रही थी, लेकिन पापा ने कुछ बनाया दोनों ने खाया और सो गए। सुबह उठकर रानी माँ को आवाज लगाने लगी पर माँ नहीं थी। रानी को अपना कोई सामान नहीं मिल रहा था। वह स्कूल के लिए भी लेट हो रही थी। पापा ने टिफिन भी नहीं दिया, चाय भी नहीं दी। रानी भूखी - प्यासी स्कूल चली गई कैंटीन में कुछ खाने का मन नहीं था। घर आई तब भी माँ को ना देख कर रोने लगी। ऐसे ही दो दिन बीत गए। उसे माँ की बातें, डांट सब याद आने लगा और वह रोने लगी। उस दिन शाम को पापा के घर आने के बाद, रानी ने चाय बनाकर दी। पापा की आँखों में खुशी की चमक दिख रही थी। रानी ने खाना बनाया पर खाना खाने लायक नहीं था। उसे फिर माँ की याद आ गई।
“मां खाना अच्छा नहीं है। कुछ बनाओ।” कहते ही मां कुछ नया बना देती थी। अब रानी धीरे-धीरे घर के काम करने लगी, घर को सुसज्जित रखने लगी। सुबह जल्दी उठकर तैयार होना, नाश्ता बनाना, यह सब कार्यक्रम करने लगी।
तीन-चार दिन बाद मम्मी बेहाल सी घर आई। रानी बोली “ मां कहां थी? कोई फोन भी नहीं किया, आप इतनी बीमार कैसे हो गई ?” रानी के सवाल खत्म ही नहीं हो रही थे। पापा ने कहा, “माँ हॉस्पिटल में थी। बेहोश हो गई थी। आज होश आया तो डॉक्टर को घर का पता बताया।”
रानी रोने लगी, “यह सब मेरी वजह से हुआ है। अब मैं जिम्मेदार बनूंगी।” उसने मां की सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ी। सुबह नाश्ता, खाना, जूस , दवाई, घर की साफ - सफाई, स्कूल की पढ़ाई सब समय पर करने लगी। यह सब देख कर माँ खुश हो गई और एक दिन बोली, “रानी तू तो समझदार हो गई, बेटा।”
“ माँ यह सब मेरी वजह से हुआ ना, मुझे तेरी कदर का पता चल गया है। समय के साथ जिम्मेदार होने का एहसास भी हो गया। गेट पर कामिनी व्यंग्यात्मक मुस्कान बिखेर रही थी माँ खुश थी और मनोज गर्व से सीना चौड़ा कर बेटी को आवाज लगा रहा था। सविता का एक झूठ रानी को रास्ते पर ले आया।
*राजुला,गुजरात
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