✍️नमिता गुप्ता 'मनसी'
सुनों..
राहें अंजान ही होती हैं,
चलें तो ही पहचान होती है !!
पथ दूभर हो,
या कि दुश्वारियों भरा
मन हो दृढ़,
तो बाधाएं मेहमान होती हैं !!
चले हम..चलना ही था,
कहो डर कैसा
ये मुट्ठी भर आशाएं भी
भगवान् होती हैं !!
सुनों, भावों की तहरीरों को
मंजिल बना लिया
बिन तुम्हारे, कहां
वीथिका आसान होती है !!
हां, राहें अंजान ही होती हैं,
चलें तो ही पहचान होती है !!
*मेरठ
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